आउटर पर रुकी ट्रेन / हरिनारायण व्यास
जिसके आने का अब कोई वक्त तय नहीं था
किसी भी घोषित समय से पहले या
बाद में अब वह आ सकती थी
आ पहुँची है ।
वह चीख़ रही है बार- बार
शोर मचा रही है।
प्लेटफार्म पर खलबली है ।
उसके आने को अब कब तक रोक सकोगे ?
उसे आना ही है
यह तुम्हारी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि
उसे आने दो ।
वह दस्तक देकर लौट जाने वाला
आगन्तुक नहीं है। समय पर न आ पाना
उसकी कोई मजबूरी रही होगी ।
अब वह आ गई है
हाथी कि तरह चिंघाड़ रही है
अपनी मौजूदगी
जता रही है ।
वह अपने साथ
जंगल के खेतों की हर हँसी
खिलखिलाते फूलों की ताजगी
गिरमिटियों की सतर्क तत्परता
फूलों की चरमराती कसक
अंधेरे का लिहाफ़ उठाकर
झाँकते झोपड़ों की सुबह
घर लौटते चौपायों की चुहल
चूल्हों की आग से स्पष्ट होती तृप्ति
कुत्तों की भाग- दौड़ के नज़ारे
खलिहानों की कथाएँ
गरम रातें
शर्मिंदा शहरों की निर्विकार
सुस्त रोशनी
भीगी दूरियाँ
ला रही है ।
हँसते रूठते खिलखिलाते बच्चे
अनिद्रा और बेपरवाही से
परेशान अनिकेतन बूढ़े
बुरे भले चेहरे देखकर
पत्थर हुए मजबूर
अमानवीय आईने
लुंगीधारी बाबू
बुर्का पहने गुस्सैल बीवियाँ
सपने देखती लड़कियाँ
डिब्बे झाड़कर
मिहनत को सार्थक बनाते बच्चे
आश्वस्त भिखमंगे आदि
अनेक अजूबे
उसके गर्भ में हैं ।
वह न जाने क्या-क्या नया
साथ ला रही है ।
सूरज उझककर उसे देख रहा है
तारों पर बैठे पंछियों ने अपने मुँह
उसकी तरफ कर लिए हैं
वह चीख़ रही है
जंगल जगा रही है
सिग्नल दो
उसे आने दो ।