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मुझसे मिलने की / हरिवंश प्रभात
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मुझसे मिलने की, कुछ पहल कर लें।
याद मेरी भी कुछ ग़ज़ल कर लें।
बँट रहे हैं जो, फूल के तोहफ़े,
अपने हिस्से में भी कमल कर लें।
ऐसा कुछ हो, तेरी मुहब्बत में,
दिल है खंडहर, उसे महल कर लें।
यूँ तो पर्वत के दिल भी होते हैं,
उनका एहसास भी नक़ल कर लें।
काटकर रास्ते न चल अपना,
मसअले हैं उन्हें भी हल कर लें।
पत्थरों से अयाँ हुआ चश्मा,
देखकर ज़िन्दगी सरल कर लें।
है ग़लत रास्ते पर ही मंजिल,
चल के ‘प्रभात’ जी सफल कर लें।