भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैठो नहीं यूँ हार के / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:20, 17 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बैठो नहीं यूँ हार के।
हँसो ठहाका मार के।
धरना पर हमला होता,
मुद्दे हैं अत्याचार के।
पूछो जाकर हाल कभी,
मंत्री जो कारागार के।
सब्जी महँगी जब रहे,
खाओ ज़रा चटकार के।
भ्रष्टाचार की बातों पर,
घर को रखो सँवार के।
गांधी जी की समाधि पे,
बैठो जूते उतार के।
अब कहना क्या बाक़ी है
अनशन पर अन्ना हज़ार के।