Last modified on 17 नवम्बर 2023, at 00:27

बिना पिये ही रहता है / हरिवंश प्रभात

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 17 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बिना पिये ही वह रहता है जब नशे की तरह।
गुज़ारता है जो दिन भी बड़े मज़े की तरह।

वो जोड़ तोड़ के सरकार भी बना लेगा,
चुनाव जीता है समझो, न मनचले की तरह।

क़दम-क़दम पर यहाँ ताक में सितमगर हैं,
भलाई चाहो तो रहना यहाँ भले की तरह।

प्यास मेरी वह हरगिज़ बुझा सकी न कभी,
ग्लास जाम से लगता है क्यों भरे की तरह।

बुलंद हौसला रखते हो मानता हूँ मगर,
चबा सकोगे न लोहे को तुम चने की तरह।

जो नारियों पर है जुल्मों सितम की बौछारें,
इसे न समझे कभी आम मसअले की तरह।

तुम्हारा लक्ष्य है सच्चा तो फिर विजय होगी,
मिलेगी मंज़िलें तुमको सजे-सजे की तरह।

जो मीठे पानी में घोला है नफ़रतों का नमक,
वो पानी पीने में लगता है अब खरे की तरह।