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भुलावे का ही जब तम्बू तना / हरिवंश प्रभात
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भुलावे का ही जब तम्बू तना है,
गया अब तक कहाँ वह बचपना है।
शहर को शुक्रिया सौ बार कर लो,
बुजुर्गों के लिए भी घर बना है।
दरो दीवार कितनी ख़ूबसूरत,
वहाँ पर साटना पोस्टर मना है।
चलो अब लौट जाएँ उम्र लेकर,
हवा पुरवा चली, बादल घना है।
हुआ लम्बा समय अस्वस्थ रहना,
चबाना पड़ रहा लोहा चना है।
गिने जाते यहाँ कुछ लोग अच्छे,
सही है, मत कहो यह कल्पना है।
नयी पुस्तक थमाता डाकिया जब,
पढ़ूँ ‘प्रभात’ दिल से कामना है।