भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश के हित में / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 17 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देश के हित में ऐसे नेता काल रहे हैं।
सारे तथ्यों पर जो चादर डाल रहे हैं।
संशय में अब नहीं है कोई अदना भी,
कथनी-करनी में अंतर विकराल रहे हैं।
दीप जलाते ही हो जाती तेज हवाएँ,
जैसे जलने वाले मनसा पाल रहे हैं।
कैसे मछली बच पाएगी इंसा से,
जब जल की धारा में अनगिन जाल रहे हैं।
जिन पर किया भरोसा, मिलता साथ कहाँ,
लगता जैसे लोगों में जंजाल रहे हैं।
भटक रहा मन वनवासी जैसा ‘प्रभात’
ज़ुबान पर ताले और पावों में छाल रहे हैं।