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सूनी आँखों में नए / हरिवंश प्रभात
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सूनी आँखों में नए कुछ देने आया हूँ ख़्वाब
काँटों पर चलकर मैं दूँगा, उनके हाथों में गुलाब।
कर दी जिसने ज़िंदगानी, देश पर क़ुर्बान है,
करते हैं उनको नमन हम दिल से कहते हैं आदाब।
मुश्किलों का दौर यह कुछ पल का ही मेहमान है,
देख लेना जल्द ही आ जाएगा अब इंक़लाब।
कितनी दूरी चल चुके तुम पग के छाले देख लो,
है निकलने वाला राही प्रगति का आफ़ताब।
भावना की तेरी नदी सूख ना पाए कभी
उसकी पतली धार को हम देंगे पानी बेहिसाब।
ऐसा हो विश्वास दिल में, हारने को हम नहीं,
होगा हासिल ख़ूब ही ‘प्रभात’ रुतबा लाजवाब।