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ममतालु होते गए पिता के लिए / रजत कृष्ण

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पिता की गोद में
फूल-सी दो बेटियाँ
और एक बेटा छोड़कर
चिड़िया बन उड़ गई माँ
अनन्त में जब —
पितृत्व की काया में ममत्व सँजोए
कैसे ममतालु होते गए पिता
नहीं पता बच्चों को यह !

यों कभी नहीं भूले वे यह
कि हाथ वो पिता के ही थे
जो गूँथा करते बचपन में
दोनों बहन की वेणियाँ
और तीनों भाई-बहन
खाते थे जो रोटियाँ
उनमें नमक से लेकर आग-पानी तक
पिता के हाथों से ही सिरजता था ।
बिन माँ की सन्तान कह-कह कर
बिंधी जाती तीक्ष्ण वाणियों से
तीनों की छाती जब
घाव से उबारने के लिए मरहम लगाते हाथ
होते पिता के ही — जानीं जब बेटियाँ ने यह बात
धीरे-धीरे ज्यों, माँ बनती गई
अपने बूढ़े पिता की वे !!