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यह नन्हा कन्धा कच्चा मूड़ / रजत कृष्ण
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यह नन्हा कन्धा
कच्चा मूड़
जो धान का बीड़ा बोहे
हुलस रहे
सन्तान हैं उस भारत की
जिस पर देश की
भूख मिटाने का ज़िम्मा है ।
नहीं पता इन्हें अभी
इस भारत में
किसान के मूड़-कान्धे पर
कितना-कितना कर्ज़ा है।
खिलखिल करती हंसी इनकी
नहीं जानती सच्चाई यह भी
कि जो बीड़ा इनके कन्धे पर है
दाना-दाना उसका
कर्ज़ में डूबा-धँसा है ।
झूल रहे
फाँसी पर जब
टूटे-हारे किसान
एक-एक कर जनपदों में
क्या अबोध ये
समझेंगे भी
कि किसान यहाँ हंसता नहीं कभी अब
उसके हिस्से तो
फ़कत रोना ही रोना है ।
रहे सदा
कान्धे ये मज़बूत
और मूड़ पर
बाली धान की
खिलखिल मुस्काती रहे
कौन भला यहाँ
यह तय करे सब
हो अनसुनी जब
पीड़ा गाँव - जनपद की
संसद में भी ।।