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पानी को पानी कह पाना / जगदीश व्योम
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डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:46, 30 नवम्बर 2023 का अवतरण
इतना भी
आसान कहाँ है !
पानी को पानी कह पाना !
कुछ सनकी
बस बैठे ठाले
सच के पीछे पड़ जाते हैं
भले रहें गर्दिश में
लेकिन अपनी
ज़िद पर अड़ जाते हैं
युग की इस
उद्दण्ड नदी में
सहज नहीं उल्टा बह पाना !
इतना भी.... !!
यूँ तो सच के
बहुत मुखौटे
क़दम-क़दम पर
दिख जाते हैं
जो कि इंच भर
सुख की ख़ातिर
फ़ुटपाथों पर
बिक जाते हैं
सोचो !
इनके साथ सत्य का
कितना मुश्किल है रह पाना !
इतना भी............. !!
जिनके श्रम से
चहल-पहल है
फैली है
चेहरों पर लाली
वे शिव हैं
अभिशप्त समय के
लिए कुण्डली में
कंगाली
जिस पल शिव,
शंकर में बदले
मुश्किल है ताण्डव सह पाना !
इतना भी........ !!
-डॅा. जगदीश व्योम