तीन स्त्रियाँ / रसूल हम्ज़ातव / श्रीविलास सिंह
जब मैं चला मैंने चुम्बन लिया तीन स्त्रियों का ।
एक छतनार वृक्ष के नीचे
खड़ी एक ने कहा :
“यदि तुम भूल गए,
मैं नहीं बहाऊँगी एक भी आँसू तुम्हारे लिए !”
दूसरी ने कमर पर घड़ा रखे
दरवाजे पर खड़े हुए कहा मुझसे :
“जल्दी वापस आना, अलविदा !”
तीसरी ने, बस, खड़े खड़े एक आह भरी ।
पहली को जल्दी ही भूल गया
चकदार आसमान के नीचे ।
दूसरी को मैंने याद रखा
बस, अगली सुबह होने तक ।
मैं गुज़रता रहा, चलता रहा बहुत सारे रास्तों पर
और सुस्ती के समय उत्प्रेरित करता घोड़े को
क्योंकि सदैव ही मेरा पीछा करती रहीं
स्मृतियाँ तीसरी की ।
पहली, झगड़ालू, थी छत पर
मुझे सरपट जाते देखने को ।
दूसरी, सुशील और मुस्कराती हुई, ने दिया
मुझे जल झरने से ।
तीसरी नहीं थी, कहीं न थी दिखाई पड़ती,
उसकी अनुपस्थिति वहाँ हुई मुझे महसूस,
और वही थी वह स्त्री जिसके बारे में
देखता हूँ मैं स्वप्न ―
तीसरी ― जिसका मैंने चुम्बन लिया ।