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वैदिक दर्शन / संगम मिश्र

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अभिनन्दन करती सूर्यकिरण,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन॥

दिनमणि का दीपित उच्चभाल-
अम्बर समान विस्तृत विशाल-
अर्णव जैसा विराट दर्शन-
पल्लवित सृष्टि का है कण कण।
जैसे अनादि युग से प्रतिक्षण-
भू का अबाध गतिमय घुर्णन-
निश्चित क्रम में निश्चित पथ पर-
क्रमशः ऋतुओं को जाग्रत कर-
बहु दृश्य उपस्थित करता है-
जग विविध प्रकार निखरता है।
वैदिक दर्शन की दिव्य शक्ति-
भर देती उर में भाव भक्ति-
नर बन जाता सुरभित चन्दन-
शीतल-पवित्र हो जाता मन।

मानवता का उज्ज्वल दर्पण,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन॥

केवल तृण भर पाकर प्रसाद,
पुष्पित है जग का हर समाज।
अन्यथा समय ऐसा आता,
मानव, मानव को खा जाता।
थे अन्य क्रूर, हिंसक, निर्दय,
पशुओं के प्रति भी नहीं सदय,
तो कौन भला बच सकता था?
जीवन कैसे बस सकता था?
पर अहा! सनातन धर्म सरल,
औदार्यपूर्ण पावन निश्छल,
फैलाया प्रेम प्रकाश नवल,
जन-जन का हृदय हुआ शीतल।
सबका जीवन है हरा-भरा,
जगमग-जगमग कर रही धरा।

खिल रहे सुगन्धित नए सुमन,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन॥

वैदिक कुल में शिक्षित होकर,
हैं हुए कई ज्ञानी दुर्धर।
गौतम का अर्जित मूल ज्ञान,
वेदों से उद्धृत है प्रमाण।
जिसका कुछ अंश मात्र पाकर,
कृतकृत्य अनेक तीर्थंकर।
वैदिक दर्शन पर मन्थन कर,
यूनान बना विद्वान प्रवर-
बन गया प्राप्त कर सूत्र प्रखर,
अरबों-युरोपियों का गुरुवर।
देवों का प्रस्तुत शान्तिदूत,
सबके विकास हित फलीभूत।
है पावन पुण्यमयी आशा,
सर्वत्र प्रगति की अभिलाषा।

अतुलित उदार जन मन रञ्जन,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन।

सर्वज्ञ, चिरन्तन से थिर है!
सम्पूर्ण ज्ञान का मन्दिर है।
इसमें विलीन हैं शास्त्र सकल।
प्रत्येक क्लिष्ट प्रश्नों का हल।
वेदों में बसता तत्व ज्ञान,
शतपथ दीपित करते पुराण।
उपनिषदों में वैदिक दर्शन,
जनहित निःस्वार्थ श्रेष्ठ चिन्तन।
विज्ञान सङ्ग संज्ञान लिये,
प्रेमिल अनन्त मुस्कान लिये,
मन का क्रन्दन, विषाद, संशय,
हर्ता, कर्ता विधिगत निर्णय।
ऐसा प्रबुद्ध, ऐसा हितकर,
हाँ! एक नहीं है पन्थ इतर।

कट जाते सारे भवबन्धन,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन।

अद्भुत है विधि का एक नियम,
आते क्रमशः उत्थान-पतन।
कल तक था ज्योतिर्मय प्रभास,
हो चुका देव! अत्यर्थ ह्रास।
जो दर्शित होता यह उतार,
निश्चित हम सबका दुराचार।
कैसा परिवर्तित, खण्डित जन।
अब सहन नहीं कर पाता मन।
अन्तस्थल भय से हिलता है।
अनुकूल सुपन्थ न मिलता है।
हे देव! हमें अब क्षमा करें!
सबके अन्तर में रमा करें!
फिर फैले वेदों का प्रकाश,
हो पुनः हमारा नव विकास।

सज्जित, सौरभमय हो उपवन,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन।

पथ भ्रमित हो रहा है समाज,
है फैल रही विकराल आग।
है अधिक दिनों की नहीं बात,
नश्वर जीवन का क्या बिसात।
निश्चय क्षणभङ्गुर है जीवन,
क्यों व्यर्थ कर रहे हो चिन्तन?
निज कुल से वृथा विलग होकर,
क्यों भटक रहे मेरे प्रियवर?
तजकर अपना यह धर्म सजल,
क्या प्राप्त करोगे वस्तु नवल?
सर्वस्व यहीं लुट जाएगा।
सोचो! ऊपर क्या जाएगा?
किसलिए कलङ्क लगाते हो?
क्यों अन्य धर्म अपनाते हो?

हे मेरे प्रिय अनमोल रतन!
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन।

जिनका जीवन-दर्शन उजाड़,
कण्टकित, भयानक, शुष्क झाड़,
क्या ढूँढ़ रहे उस बञ्जर में?
क्या नहीं हमारे प्राङ्गण में?
श्रद्धानत भक्ति भाव भरकर,
मन विनय कर रहा है प्रियवर।
दृग बिन्दु नहीं रुक पाते हैं,
व्याकुल हम तुम्हें बुलाते हैं।
स्वजनों की करुण पुकार सुनो!
सच्चा जीवन निस्तार चुनो!
दूषित कुत्सित विचार तजकर,
वापस आ जाओ अपने घर!
हम पुनः तुम्हें अपना लेंगे,
पलकों पर तुम्हें बिठा लेंगें।

पथ देख रहे कातर लोचन,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन।

अभिनन्दन करती सूर्यकिरण,
है परम श्रेष्ठ वैदिक दर्शन।