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उधर मत जाओ / स्वप्निल श्रीवास्तव
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जिधर बैठे हों
परिन्दों के जोड़े,
उधर मत जाओ,
अन्यथा वे उड़ जाएँगे ।
उन्हें निर्विघ्न रहने दो ।
चाहो तो उन्हें छिपकर
देखो
और अपने जीवन में प्रेम की
जगह खोजो ।
किसी प्रेमी –युगल के
प्रेम-व्यापार में खलल डालना
किसी क्रोच -वध से
बड़ा पाप है ।
इस हृदय-विदारक दृश्य को
देखकर वाल्मीकि कवि बन गए थे
परिन्दे, सघन जंगलों और
खण्डहरों में अपने प्रेम के
लिए सुरक्षित ठिकाना खोजते रहते हैं ।
दुष्ट शिकारी वहाँ पहुँच जाते हैं ।
शिकारियो !
अपनी बन्दूक का इस्तेमाल
मासूम पक्षियों के लिए नही,
उन आदमख़ोरों के लिए करो,
जिन्होंने दुनिया को जंगल
बना दिया है ।