भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे पानी दो / गुन्नार एकिलोफ़
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:45, 20 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुन्नार एकिलोफ़ |संग्रह=मुश्किल से खुली एक खिड...)
मुझे पानी दो
पीने के लिए नहीम
वरन धोने के लिए अपना अंतस
मैं नहीं मांगता हूँ तेल
मुझे चाहिए ताज़ा पानी
देखो किस कदर बढ़ रहे हैं कीड़े मेरी काँख में,
जांघ पर मेरी बाईं ओर
और जांघ पर दाईं
और दोनों के बीच
फफदते हैं फोड़े
मैं उतार सकता हूँ अपने पाँव के तल्लों की खाल,
मुझे धोने के लिए अपना अंतस अपना जल दो
तेल नहीं
नकारता हूँ मैं तुम्हारा तेल
दो मुझे पानी ।