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अमराई यौवन भरी / सुरंगमा यादव

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  1
अमराई यौवन भरी, कोयल भरे मिठास।
हवा बसंती कह रही, आजा छोड़ प्रवास।।
2
होली के उल्लास का, कुछ मत पूछो हाल।
हर मुखड़े पर रंग है, सब मिल करे धमाल।।
3
होली की यह रीत है, बरसे सब पर प्रीत।
देखो हुनर गुलाल का, रूठे मन ले जीत।।
4
फागुन मस्ती में भरा, मादकता चहुँओर
मन सौरभ-सौरभ हुआ, ठहरे न एक ठोर।।
5
तेरी पीड़ा देखकर, भीगे मेरे नैन।
करूँ कौन- सा मैं जतन, तुझको आए चैन।।
6
आज नहीं वे कल कहें, शायद मन की बात।
बीत रहे इस आस में, जीवन के दिन रात।।
7
आजादी हमको मिली, बदला राज- समाज।
बदले ना दिन दीन के, जो कल थे वे आज।।
8
जीवन सत्ता पर रहा, सुख- दुख का अधिकार।
समय चक्र जैसा चले, करना है स्वीकार।।
9
गहरी होती जा रही, मन की नित्य दरार।
प्रेम दया के मायने, आज हुए बेकार।।
10
स्वार्थ हुआ सबसे बड़ा, बदलें रिश्ते रंग।
अहंकार मन में भरा, घर-बाहर है जंग।।
11
कविता जनकल्याण की, सुरसरि सलिल समान।
सरस भाव मन में भरे, सत्पथ का दे ज्ञान।।
12
शुभ आगत नव वर्ष हो, सब हों हर्ष विभोर।
कलुष भाव मन से मिटे, बँधे प्रेम की डोर।।
13
जग की लीला देखकर, मन हो गया उदास।
दाँव वही चलता रहा, लगता था जो खास।।
14
धरती ज्वर में तप रही, मेघ पिया की आस।
जेठ सामने से हटे,बिखरे मिलन सुवास।।
15
चटक रंग दिखला रही, अड़कर बैठी धूप।
तपन जेठ की बढ़ रही, झुलसा जाये रूप।।
16
धूप सयानी हो गई, बचपन में ही खूब।
गर्मी की देखो हनक,सूखी जाये दूब।।
17
सिर पर छत तन पर वसन, रोटी हो दो जून।
चिंता में जीवन गया, क्या मई और जून।।
18
पढ़- लिख कर शहरी बने,भूले सब संस्कार।
मात- पिता का भी नहीं, करते अब सत्कार।।
19
मन आँगन में रोप दो, प्रेम-दया की बेल।
कटुता मिट जाये सभी, बढ़े परस्पर मेल।।
20
शब्द-बाण ऐसे चले, मन है लहूलुहान।
याद नहीं हमको रहा, अपने पद का मान।।
21
शूल बिछाते ही रहे, पथ में जो गतवर्ष।
फूलों का उपहार दे,उनको यह नव वर्ष।।
22
मंगलकारी वर्ष हो, मिट जाये सब क्लेश।
दीपक खुशियों का जले,बिखरे ज्योति अशेष।।
23
होरी और कबीर की, मौन हुई आवाज।
डीजे की धुन पर सभी, झूमें नाचें आज।।
24
चटक प्रीत के रंग-सा, फिर खिल उठा पलाश।
मादक महुआ कह रहा, पिया मिलन की आस।।
25
खूब दिखाये जिंदगी, नखरे और गुरूर।
चल देती मुँह फेरकर, पल में कितनी दूर।
26
सुगम राह ही चाहता, मन पंछी नादान।
लंबी दूरी देख कर, भरता नहीं उड़ान।।