भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन / सुनील कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 18 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक ही वर्ष में
पड़ोस की ज़मीन पर उग आयीं
चार पाँच और मीनारें
माचिस की डिब्बियों की तरह
रख दिये गये फ्लैट्स
फ़्लैट के ऊपर फ़्लैट
हवा भी यहाँ सीढ़ियों से चढ़कर
ऊपर जाती होगी
गुनगुनाती धूप अन्दर आने के लिए
बालकनी खोजती होगी।
एक अकेले की छत पर
चाँद थोड़े ही उतर आता होगा
किसके हिस्से में जाने कितना आता होगा
हवा, रोशनी, आकाश,
सब ही तो बँट जाता होगा
पैमाना कोई होता तो
माप कर देखते
जीवन इन फ़्लैटों में
कितना सिकुड़ जाता होगा॥