भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिटिया का पिता / सुनील कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 18 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्कूल, ऑफिस,
मेला या सिनेमा से अगर
घर ना आये
समय से बिटिया
तो मन में तमाम तरह की आशकाएँ
कर जाती हैं घर

ढाई इंच की स्क्रीन
से निकलता एक शब्द
 'अनरीचेवल'
खीच जाता है ढेरों बिम्ब ...

कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई
सड़क पार करने में
कहीं दोस्त या कोई अनजान शख्स
जानवर तो नहीं बन गया

आक्रोश-हताशा-भय के
निरंतर उठते चक्रवात में
छटपटाता है पिता
निशब्द, हो कर स्तब्ध ...
बिना मरे ही
कितनी मौत मर जाता है पिता

वो चालीस की उम्र
में यूँ ही नहीं
पचपन का हो जाता है

आसान नहीं होता
बिटिया का पिता होना
सचमुच नहीं होता॥