आओ खेलें होरी / रश्मि विभा त्रिपाठी
1
अरमाँ मेरे जी का
तेरी खुशियों का
ना रंग पड़े फीका।
2
कैसे खेले होरी
पिय परदेस बसे
गुमसुम बैठी गोरी।
3
आओ खेलें होरी
कोई अभिलाषा
ना रह पाए कोरी।
4
बरसाने की छोरी
संग कन्हैया के
वो खेल रही होरी।
5
कोई ना आज बचा
ब्रज में देखो तो
कैसा हुड़दंग मचा।
6
अरमान न ये टूटे
ऐसा रंग लगा
जीवन भर ना छूटे।
7
बरतो ना कोताही
अपने रंग मुझे
रँग दो अब तुम माही।
8
फूले ये टेसू हैं
वो परदेस बसे
भीगे ये गेसू हैं।
9
अबकी भी फागुन में
मेरे दिन बीते
परदेसी की धुन में।
10
जब भी फागुन आया
तेरे रंग रँगूँ
मेरा मन बौराया।
11
कान्हा ने यों सुन री
मारी पिचकारी
आली! भीगी चुनरी।
12
ब्रज में आई होली
निकल पड़ी देखो
हुरियारों की टोली।
13
होली यों खेल रहे
रंगों की गागर
गोपाल उड़ेल रहे।
14
सबसे बेखबर हुए
तेरे रंग रँगे
हम तो तर-बतर हुए।
15
फागुन का राग पिया
कितना मीठा है
गाता है फाग जिया।
16
होली में लोग भले
भूल गिले- शिकवे
मिलते हैं आज गले।
17
मौसम भी भरमाया
फागुन ने आके
ऐसा रंग बरसाया।
18
मेरा जियरा बहके
आज पलाश कई
होली में हैं दहके।
19
मौसम ये मस्त हुआ
होली आई है
गाता है मन फगुआ।
20
बचपन की होली की
याद बहुत आती
उस हँसी- ठिठोली की।
21
दिन प्यारे बचपन के
संग मनाते थे
होली हम हर जन के।
22
हर एक अदा भोली
आई याद हमें
बचपन की वो होली।
23
मन में केसर घोली
संग पिया ने जब
आकर खेली होली।
24
होली थी वो न्यारी
लाकर देते थे
पापा जब पिचकारी।
25
आया होली का दिन
लेकर लठ्ठ चलीं
ब्रज की सब हुरियारिन।
26
मेरे मन भाया है
प्रेम पगा तुमने
जो रंग लगाया है।
27
चाहत का रंग पिया
तुमने छिटकाया
है आज मलंग जिया।
28
होली में संग पिया!
उड़ता अम्बर में
बन आज पतंग जिया।
29
होली वो बचपन की
याद हमें आई
अपनी उस पलटन की।
30
मन की आशा बोली
वो परदेस बसे
कैसे खेलूँ होली?
31
रुत आई फागुन की
हाथ गुलाल लिये
मैं राह तकूँ उनकी।
32
सब रंग चुरा लाऊँ
इन्द्रधनुष से मैं
तुमको तर कर जाऊँ।
33
बस ये ही चाह करूँ
तेरे जीवन में
खुशियों के रंग भरूँ।
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