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यहांँ क्यों लोग इस सच्चाई से अनजान होते हैं / धर्वेन्द्र सिंह बेदार

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यहाँँ क्यों लोग इस सच्चाई से अनजान होते हैं
कि अच्छे कर्म ही इंसान की पहचान होते हैं

हमारा ये नज़रिया है कि दुनिया इक सराए है
यहाँँ सब लोग कुछ ही रोज़ के मेहमान होते हैं

मुसलमांँ है न कोई सिख न ही हिंदू न ईसाई
किसी मज़हब के हों इंसान तो इंसान होते हैं

कभी तो ऐ हुकूमत ले ख़़बर तू इन ग़रीबों की
ग़रीबों के भी तो कुछ ख़्वाब कुछ अरमान होते हैं

मुनाफ़ा गर कोई होता यही व्यापार करते सब
मुहब्बत की तिजारत में फ़क़त नुक़सान होते हैं

न घबराओ ज़रा-सा भी सफ़र की मुश्किलों से तुम
सफ़र में मुश्किलों से रास्ते आसान होते हैं