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फिर आज दिल ग़रीब यह देता है वास्ता / शिव कुमार बटालवी

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फिर आज दिल-ग़रीब ये देता है वास्ता
दे जा मिरी क़लम को तू इक और हादसा

मुद्दत हुई है दर्द का इक जाम भी पिए
तू ग़म में अश्क घोल के दे जा दो-आतिशा

काग़ज़ की कोरी रीझ है चुप-चाप देखती
गीतों का लफ़्ज़ लफ़्ज़ भटकता है क़ाफ़िला

चलना मैं चाहूँ पाँव में काँटों की ले के पीड़
हो कोख और क़ब्र में अब जो भी फ़ासला

मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : आकाश ’अर्श’