भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असाँ ताँ जोबन रुत्ते मरना / शिव कुमार बटालवी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:13, 7 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव कुमार बटालवी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असाँ ताँ जोबन रुत्ते मरना
मुड़ जाना असाँ भरे भराए, हजर तेरे दी कर परकरमा
असाँ ताँ जोबन रुत्ते मरना ।

जोबन रुत्ते जो वी मरदा, फुल्ल बने जाँ तारा
जोबन रुत्ते आशिक मरदे, जाँ कोई करमाँ वाला
जाँ उह मरन कि जिन्हाँ लिखाए हजर धुरों विच करमाँ
हजर तुहाडा असाँ मुबारक नाल बहशतीं खड़ना
असाँ ताँ जोबन रुत्ते मरना ।

सज्जन जी, भला, किस लई जाणा, साडे जेहा निकरमा
सूतक रुत्त तों जोबन रुत्त तक, जिन्हाँ हँढाईआँ शरमाँ
नित्त लज्ज्या दियाँ जँमण-पीड़ाँ, अणचाहआँ वी जरना
नित्त किसे देह विच फुल्ल बण के खिड़ना, नित्त तारा बण चड़्हना
असाँ ताँ जोबन रुत्ते मरना ।

सज्जन जी, दिसे सभ जग्ग ताईं, गरभ जून विच मरना
जँमणों पहलाँ औध हँढाईए, फेर हँढाईए शरमाँ
मर के करीए इक दूजे दी मिट्टी दी परकरमा
पर जे मिट्टी वी मर जाए ताँ ज्यू के की करना ?
असाँ ताँ जोबन रुत्ते मरना

मुड़ जाना असाँ भरे भराए हजर तेरे दी कर परकरमा
असाँ ताँ जोबन रुत्ते मरना ।