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सईउ नी, मेरे गल लग रोवो / शिव कुमार बटालवी

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सईउ नी, मेरे गल लग रोवो, नी मेरी उमरा बीती जाए
उमरा दा रंग कच्चा पीला, निस दिन फिट्टदा जाए
सईउ नी, मेरे गल लग्ग रोवो, नी मेरी उमर बीती जाए ।

इस रुत्ते साडा इको सज्जण, इक रुत्त ख़लकत मोही
इक रुत्ते साडी सज्जन होई, गीताँ दी ख़ुशबोई
इह रुत्त केही निकरमण, जद सानूं कोयी ना अंग छुहाए
सईउ नी, मेरे गल लग्ग रोवो, नी मेरी उमर बीती जाए ।

इह रुत्त केही कि जद मेरा जोबन, ना भर्या ना ऊणा
अट्ठे पहर दिले दिलगीरी, मैं भलके नहीं ज्यूणा
अग्ग लग्गी इक रूप दे बेले, दूजे सूरज सिर 'ते आए
सईउ नी, मेरी इह रुत्त ऐवें, पयी बिरथा ही जाए !

रूप जे बिरथा जाए सईउ, मन मैला कुरलाए
गीत जे बिरथा जाए ताँ वी, इह जग्ग भण्डन आए
मैं वडभागी जे मेरी उमरा गीताँ नूँ लग्ग जाए
कीह भरवासा भलके मेरा गीत कोयी मर जाए ।

इस रुत्ते सोईउ सज्जन थीवे, जो सानूं अंग छुहाए
सईउ नी, मेरे गल लग रोवो, नी मेरी उमरा बीती जाए
उमरां दा रंग कच्चा पीला निस दिन फिट्टदा जाए ।