भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दण्ड / नेहा नरुका
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:07, 25 मई 2024 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नेहा नरुका |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उनका एक बेटा
मर गया था ।
पूरा जीवन उसे याद करके
रोज़ सुबह रोईं वे
पर जब भी सोतीं
सपने में उसे ज़िन्दा पातीं ।
जैसे ही सपना टूटता
बेटा फिर मर जाता ।
इस तरह रोज़ बेटा मरता
रोज़ वह रोतीं ।
एक दिन वे भी मर गईं !
वे भी अपने उस
बेटे की तरह थी ।
पर मैं
उनकी तरह नहीं हूँ !