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अजेय चॉंद / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'

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चाहे नभ का चॉंद विजित हो
कवि का चॉंद अजेय रहेगा।
अग-जग को अपनी बीती जो
मधुर स्वरों में सदा कहेगा।

बन सकता वह जड़ कैसे जो
मर-मर कर सो बार जिया है,
जिसने मृण्मय जग को अनुपम
रश्मि-सुधा का दान दिया है।

आह! हमारा प्यारा चंदा
लोक मात्र यदि रह जाएगा
कौन जगत के बालकृष्ण का
माया बन मन बहलाएगा।

कौन रचायेगा यमुना-तट
रास नृत्य फिर सुघर सलोना
उर के वृंदावन का कैसे
लहराएगा कोना-कोना।

मन चकोर फिर क्यों कर ज्वाला
अनल-कणों को चुग पाएगा,
कवि फिर मोहक उपमानों को
ढ़ूंढ़-ढ़ूंढ़ कैसे लाएगा!

किसके हृदय दाग के रस से
शीतलता का स्रोत बहेगा
कौन काव्य का उपादान बन
उपालंभ का सृजन करेगा।