भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्मशान / नामवर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 30 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नामवर सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झलकता रुपहले से पुल का तोरण नभ पर
गंगा में ज्योति-लताएँ शत-शत कम्पमान
शिशु के दृग से नीले जल को कर लाल
जल उठा अचानक ही मणिकर्णिका का श्मशान ।

तट से तिमंज़िले की स्वर - लहरी में डूबा
मिटती सिन्दूर की रेखा-सा वह दूज चाँद
सरिता का वक्ष फफोले-सा उठकर क्षण में
फिर बैठ गया ऐसे कि मुझे हो भी न मान ।