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दीवार / प्रिया जौहरी
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तुम्हारे और मेरे बीच एक दीवार है
ईंट और सीमेंट से बनी न सही
पर फिर भी है
या यूं कहूँ कि उसका अस्तित्व उससे भी मज़बूत है
दीवार पारदर्शी है दिखती नही
महसूस होती है उसका वजूद जो है
उस वजूद को समय और समाज ने क़ायम जो रखा है
मोटी है इस दीवार की परतें
धर्म ,जाति ,लिंग ,परम्पराओं ,मान्यताओं की परतें
तुम और मैं अपने विचारों से
कितने आघात करते हैं इस खोखली दीवार पे
पर न जाने क्यों ये गिरती ही नहीं ।