भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटा / अर्चना जौहरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 31 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना जौहरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वृद्ध माता पिता के ,
विदेश में बसे एकलौते बेटे ने
फ़ोन पर कहा
तुम्हारे पास आ रहा हूँ
कुछ दिनों के लिए
बच्चों को इंडिया घुमाने
बताओ तो
बताओ तो
तुम्हारे लिए क्या ले आऊँ
कुछ भी बताओ
यहाँ सब कुछ मिलता है
एक से बढ़कर एक
उम्दा और बढ़िया चीज़ें
बस नाम बताओ
तुम्हारी बहू पूछ रही है
तो माँ ने
भरभराई आवाज़ में
जवाब दिया
हाँ बेटा, ले आओ
अगर हो सके तो
थोडा-सा हौसला
जीने के लिए,
इन बूढी आँखों के लिए
कोई ख्वाब
कोई अर्थ
इन साँसों के चलने का,
ले आओ अपने पिता के
सूने होठों केलिए
मुस्कराहट
ला कर बिखेर दो
इस घर के कोने कोने में
हमारे प्रश्नों के उत्तर
इन बूढ़े हाथों को
थामने की एक,
सिर्फ एक उंगली
हो सके तो ले आना
अपनों की कुछ आहटें
जो चीर दें
हमारे चारों तरफ़ फैले
सन्नाटे को
बताओ बेटा तुम ये सब
ले आओगे ना