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काँस के फूल / ज्योति शर्मा
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तुम्हारे दाढ़ी के नये नये सफ़ेद बाल
मुझे काँस के फूलों की याद दिलाते है
वर्षा बीत चली
और आनेवाले है आश्विन के गर्म दिन
जब हम सूखते जंगलों के छोर तक जाएँगे
जहाँ बहती थी बरसाती नदी
उस पत्थरों के बिस्तर पर सूखी घास बिछाकर
तुम मुझे प्यार करोगे
इस डर से हम ज़्यादा उत्तेजित होंगे
कि कोई हमें देख न ले
जीवन समेट रहा है जब ख़ुद बहुत धीमे से
हमारे निर्वस्र शरीरों पर गिरेंगे पीले पत्ते बहुत धीमे से
तुम कहोगे बहुत धीमे से कि मैं पैर से पैर
इतना पास न सटाऊँए तुम पैर से पैर बहुत धीमे से
दूर कर लूँगी और तुम्हारे बहुत पास आ जाऊँगी
देखती तुम्हारी दाढ़ी के वे पहले पहले सफ़ेद बाल