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बादलो / शमशेर बहादुर सिंह

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ये हमारी तुम्‍हारी कहां की मुलाकात है,बादलो कि तुम दिल के करीब लाके,बिल्‍कुल ही दिल से मिला के ही जैसे अपने फाहा-से गाल सेंकते जाते हो...। आज कोई जख्‍म इतना नाजुक नहीं जितना यह वक्‍त है जिसमें हम तुम सब रिस रहे हैं चुप-चुप। धूप अब तुम पर छतों पर और मेरे सीने पर... डूबती जाती है हल्‍की-हल्‍की नश्‍तर-सी वह चमक