प्रेम या विषाद / नीना सिन्हा

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सब तुम्हारे हिस्से में आया
प्रेम या विषाद
वह हमेशा मुंसिफ की भूमिका में रहे
तय किये
और
फैसले लिये
फासलों पर खड़ा आदमी फैसले अधिक लेता है

यह तुम्हें ही निर्णय करना रहा
अदिती
कि, सूर्य तुम्हारी बंद मुठ्ठियों से खुलेगा
या
तुम्हारे पीठ पीछे अस्त होगा

वह जटिल से जटिलतम का सफर तय करेगा

तुम चुपचाप नदी की तरह बहना
कुंज व आवारा संकरी गलियों को भी
स्नेह के सघन छाँव की जरूरत होगी

मन का निस्तार बंद हो जाने में नहीं था
वह ऊँचे पर्वतों पर
सुदूर मंदिर की घंटियों की तरह सुमधुर झंकृत होता

गोधूलि बेला में भी साँझ
लावण्यमयी हुई

उसे अपनी नर्म कोमलता का भान रहा
दुख वहाँ पथिक की तरह विश्राम करते
और
कल के नये उन्वानों की वहाँ पर्चियां तय होती!

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