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प्रेरणा / नीना सिन्हा

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इक प्रेरणा श्वाँस लेती रही
जब भीड़ से तुम अलग रही
इक चेहरा जो तुम्हारी पहचान रहा
वह विकल्प का स्वाद नहीं चखता था

तुम कितनी अहर्निश ख्वाहिशों को लेकर चली
तुम्हारे फैसलों को रागमुक्त होना था
वह जो ह्रदय में प्रज्ज्वलित रहा
उससे अँधेरे नहीं दूर होते

कभी कभी तट पर आकर यात्राएँ मौन होती हैं
वह जहर, अमृत का अर्थ समझती है
यह संभवतः पहली भूल चूक नहीं
ना यकीनन आखिरी होगा

समय के प्रत्यंचा पर गुमनाम पर्चियाँ बँधी हैं
मालूम नहीं
वह किस ठौर बँधेगा
तुम मोक्ष की तरह हासिल होना
हर आडंबर से परे प्रेम वहाँ निर्वाण की तरह मुक्त होता

वह अक्सर रूप बदलता रहा
प्रेम बहुरूपिया रहा
स्वांग में
कई चेहरे बदलता था!