भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुनर्नवा / नीना सिन्हा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:39, 24 जुलाई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीना सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे कहे शब्द
मंदिर की घंटियों की तरह
गूँजते

उस दूर पहाड़ी तक आवाज़ जा कर
पुनः लौट आती है

जैसे कोई राग लय में आरोह पर
फिर
ढ़लान पर शब्द फिसलते

ज्यों फिसलन भरी पगडंडियों पर
पाँव अनायास फिसलते

कहीं यथार्थ से भटकता ध्यान
अतीत के गलियारे में
जा उलझता

मैं ध्यान से पाँव पाँव धरती
डगमग सा मन
बारिश का जोर

इस बार बरसात बहुत तीव्र है
वह बरसती नहीं
करीब बुलाती है

बूँदों को कोरा चखना
वह अमृत सी है

पुनर्जीवित करती
पुनर्नवा बन कर!