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वसीयत / निधि अग्रवाल

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सुख एक ख़ूबसूरत परिकल्पना है,
जीवन कम और अधिक दुःख के मध्य
चयन की जद्दोजहद!

मार्ग के द्वंद्व में फँसे,
नियति को देते हैं हम
मन्नतों की रिश्वतें।
देवता मनुष्यों के समक्ष निर्बल हैं,
अधूरी मन्नतें देवों की आत्मा पर बोझ।

बोझ के भार से अनझिप जगता है ईश्वर,
उसे असमय पुकारते हम नहीं जानते
यातना और मृत्यु के मध्य की साँठ-गाँठ।

यातना की विजय पर दूर खड़ी
हँसती है मृत्यु,
साथ ले जाते हुए नहीं भूलती
चुन लेना यातना का वारिस।
सलीब के रेशों पर लिखी गई हैं
तमाम वसीयतें।