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दो सच थे / कात्यायनी
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दो सच थे ।
एक मन में रहा ।
दूसरा बयान किया जाता रहा
वक़्त ज़रूरतन
सड़कों-चौराहों पर
पड़ोसियों की
बैठकों में ।
रचनाकाल : जुलाई 1997