बहुत भोले हो तुम
बार बार धोख़ा खा कर भी तुम
गढ़ने लगते हो
एक मूर्ति
किसी नायक की
जो खोले गा
तुम्हारी गिरह गांठ
सहलाये गा उन ज़ख़्मों को
जो रिस रहें हैं सदियों से
उसके पास होगी
फूलों वाली जादू की छड़ी
हवा में घुमाये गा गोल गोल
कहेगा हाँ !
मैं ही तो हूँ
मुक्तिदाता
मेरे पीछे आओ
तुमने भी सुनी तो थी बचपन में
उस बांसुरी वादक की कहानी
जिसके पीछे चल दिये थे
सब के सब चूहे।
बार बार भूल जाते हो
बहुत भोले हो यार
बचो उन आवाजों से
जो बहुत तेज होती हैं।
जय घोष त्रासदी
हर जीत मानव की छाती पर हुआ घाव है।
कविता अभी ज़िंदा है
संगीत की लहरी
और
फूलों की घाटी का स्वप्न ज़िंदा है अभी।