भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो दिन थे / कात्यायनी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:13, 22 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह=जादू नहीं कविता / कात्यायनी }} ...)
दो दिन थे ।
उनके बीच एक रात थी
ठीक वैसी ही
जिसमें हम जी रहे हैं ।
रचनाकाल : जुलाई 1997