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बेहतर बहुत बेहतर / महेश कुमार केशरी

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आदमी शुरू से हँसता आया है
इंसान के काम पे
उसकी तरक्क़ी पर सालों पहले
की तरह उसका आज भी आदमी पर हँसना
जारी है

एक ने कहा समुद्र
देवता हैं
इसको लाँघा तो जात
बाहर कर दिये जाओगे

लेकिन; आदमी ने लाँघा
समुद्र और पा लिया
शिक्षा , तकनीक और ज्ञान
को

शिक्षा पाकर आदमी का ज्ञान
समृद्ध हुआ

इस तरह एक बार एक नाविक
देश खोजने निकला
उसको भी लोगों ने उलझाया
यह कहकर कि उस देश के लोग
राक्षस होते हैं ...
 तुम्हें खा जायेंगें

लेकिन , आदमी ने खोज
निकाले
कई - कई देश

आदमी ने कढ़ाई को देखा और
बनायी
नाव
दूसरे आदमी ने कहा नाव
लकड़ी की है
और बहुत भारी है
पानी पर कैसे तैरेगी ?
देख लेना तुम्हारी नाव डूब जायेगी !
खैर

एक बार आदमी ने पंक्षी
को देखकर बनाया हवाई जहाज़
आदमी के ऊपर आदमी ने
हँसा
लोहे का जहाज़ भला
कभी उड़ा है ?
बेवकूफ़।

इस आदमी ने बनाये कई - कई बड़ी ऊँची
अट्टालिकाएँ , बड़े - बड़े
गगन चुँबी महल , बड़ी - बड़ी इमारतें
आदमी फिर हँसा आदमी पर
बोला देखना तुम्हारा ये महल
ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगा !

बौना आदमी जब पहुँचा
चाँद की सतह पर खोजने निकला
मँगल पर जीवण
तब भी आदमी ने
आदमी के ढिगने और
उसके बौने पन पर हँसा

इस तरह आदमी पाताल भी
नाप आया
और जब चक्कर लगाकर
लौट आया पूरी दुनिया का
तो ये किंवदंती भी झूठी निकली
कि धरती
शेषनाग के पीठ पर टिकी है!

इस तरह आदमी ने जब - जब
आविष्कार या क्राँति करने की सोची
या कुछ नया करने की उम्मीद पाली
आदमी ने आदमी को हिकारत और
उपेक्षा से देखा
उस पर हँसा बहुत
देर तक

लेकिन; बदलाव या क्राँति ने
आदमी के हँसी की कभी परवाह नहीं की
वो लगातार करता रहा उपेक्षा
आदमी की उस हँसी का
और ,बनाया अपने आत्मविश्वास के सहारे
दुनिया
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