ट्रैफिक चालान / अरुणिमा अरुण कमल

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ऑफ़िस से निकला था, थोड़ी-सी जल्दी थी
बेगम थीं प्रतीक्षा में, भाई की हल्दी थी
उठाई नई कार तब, लॉंग ड्राइव का मज़ा लिया
स्पीड लिमिट भूलकर, हर बत्ती को इग्नोर किया
रस्ता अभी बाक़ी था, मंज़िल अभी दूर थी
घंटी बजती जा रही थी, फ़ोन पर हुज़ूर थीं
आँखों में सपने थे, रात होनेवाली थी
शादी थी साले की, सपने में साली थी
सपना जो टूटा तो, कोई हाथ हिलाती मिली
एक ट्रैफ़िक पुलिसवाली, चलान बनाती मिली
मिन्नतें, गुज़ारिशें, सारी मेरी जारी थीं
मरता आख़िर क्या न करता, बीवी भी तो प्यारी थी
रोकते-टोकते, नज़र कार में गई
उदास-सी पड़ी हुई, रम की एक बोतल मिली
मेरी आँखों की चमक, थोड़ी-सी तो बढ़ गई
माथे की सारी शिकन, मुस्कुरा गुजर गई
मैंने तब बोतल उठाई, लपेटा उसे अख़बार में
उसके हाथों में बढ़ा, आँखों में देखा प्यार से
थोड़ा तो अपनों का भी, आप ध्यान तो रखा करो
है भाई साहब के लिए, अब इसको ना तुम ना करो
धीमे से मुसकाई, आँख उसकी भर आई
चालान फाड़ कर मुझे, धीरे से बोली गुड बाई !!

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