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बुद्ध की मौत / विवश पोखरेल / सुमन पोखरेल

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दूर हूँ, बहुत दूर
इच्छा करने पर भी नहीं छू सकता
मैं संभावनाओं के क्षितिज को।
पार नहीं कर सकता
ज़िंदगी के कठिन पुलों को।

दब गया हूँ
शोक के गुम्बद के नीचे।
अंधेरा छा गया है लुम्बिनी।
आँखों में
सिर्फ़ सपने तैर रहे हैं शांति के।

जिस पल तुमने
ईमानदारी को दफ़ना दिया
बेमानी के कब्रिस्तान में,
उसी पल हो गई है मौत
मेरे बुद्ध की।
०००