भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाय पीने के बाद उसके घर से निकलते हुए / बैरागी काइँला / सुमन पोखरेल

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 6 सितम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बैरागी काइँला |अनुवादक=सुमन पोखर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज, मेरे हजूर की
दर्शनार्थ — धृष्टता करने की सोच से
ऐसे, इस तरह बनकर आया था।

आज, मेरे हजूर की
खिदमत में बहुत कुछ कहने की सोच से
ऐसे, इस तरह झूमकर आया था।

शिष्टता के लिए साधुवाद,
चाय के लिए धन्यवाद।

और क्या कहूँ ...
सब कुछ भूल गया, जो कहने की सोचकर आया था।

देखिए...
इन आँखों में शरमाते हुए जो चित्र थे,
मेरे हजूर के ही होंगे, सोचकर
दीखाने के लिए आया था।
०००
...........................................
यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ ।