उत्तराधिकार / सुनील गंगोपाध्याय / सुलोचना
नवीन किशोर, तुम्हें दिया मैंने भुवन तट का मेघों भरा आकाश
तुम्हें दी मैंने बटन विहीन फटी हुई कमीज़ और
फुफ्फुस भरी हँसी
दोपहर की धूप में घूमना पैयाँ-पैयाँ, रात के मैदान में सोना होकर चित
यह सब अब तुम्हारे ही हैं, अपने हाथों में भर लो मेरा असमय
मेरे दुख-विहीन दुख क्रोध सिहरन
नवीन किशोर, तुम्हें दिया मैंने मेरा जो कुछ भी था आभरण
जलते हुए सीने में कॉफ़ी की चुस्की, सिगरेट चोरी, खिड़की के पास
बालिका के प्रति बारम्बार ग़लती
पुरुष वाक्य, कविता के पास घुटने मोड़कर बैठना, चाकू की झलक
अभिमान में मनुष्य या मनुष्य जैसे किसी और चीज़ के
सीने को चीरकर देखना
आत्म-हनन, शहर को अस्तव्यस्त करता तेज़ क़दमों से रौंदता अहंकार
एक नदी, दो-तीन देश, कुछ नारियाँ —
यह सब हैं मेरे पुराने पोशाक, बहुत प्रिय थे, अब शरीर में
तंग हो कसने लगे हैं, नहीं शोभते अब
तुम्हें दिया, नवीन किशोर, मन हो तो अंग लगाओ
या घृणा से फेंक दो दूर, जैसी मरज़ी तुम्हारी
मुझे तुम्हें तुम्हारी उम्र का सब कुछ देने की बहुत इच्छा होती है ।
—
मूल बंगाली से अनुवाद : सुलोचना
लीजिए, अब बंगाली भाषा में यही कविता पढ़िए
সুনীল গঙ্গোপাধ্যায়
উত্তরাধিকার
নবীন কিশোর, তোমায় দিলাম ভূবনডাঙার মেঘলা আকাশ
তোমাকে দিলাম বোতামবিহীন ছেঁড়া শার্ট আর
ফুসফুস-ভরা হাসি
দুপুর রৌদ্রে পায়ে পায়ে ঘোরা, রাত্রির মাঠে চিৎ হ’য়ে শুয়ে থাকা
এসব এখন তোমারই, তোমার হাত ভ’রে নাও আমার অবেলা
আমার দুঃখবিহীন দুঃখ ক্রোধ শিহরণ
নবীন কিশোর, তোমাকে দিলাম আমার যা-কিছু ছুল আভরণ
জ্বলন্ত বুকে কফির চুমুক, সিগারেট চুরি, জানালার পাশে
বালিকার প্রতি বারবার ভুল
পরুষ বাক্য, কবিতার কাছে হাঁটু মুড়ে বসা, ছুরির ঝলক
অভিমানে মানুষ কিংবা মানুষের মত আর যা-কিছুর
বুক চিরে দেখা
আত্মহনন, শহরের পিঠ তোলপাড় করা অহংকারের দ্রুত পদপাত
একখানা নদী, দু’তিনটে দেশ, কয়েকটি নারী —
এ-সবই আমার পুরোনো পোষাক, বড় প্রিয় ছিল, এখন শরীরে
আঁট হয়ে বসে, মানায় না আর
তোমাকে দিলাম, নবীন কিশোর, ইচ্ছে হয় তো অঙ্গে জড়াও
অথবা ঘৃণায় দূরে ফেলে দাও, যা খুশি তোমার
তোমাকে আমার তোমার বয়সী সব কিছু দিতে বড় সাধ হয়।