भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मित्र / प्राणेश कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:09, 19 सितम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राणेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे हो मित्र
कहाँ-कहाँ जाते हो
क्या-क्या करते हो आजकल ?
 
ये तुम्हारे पैर इतने डगमगाने क्यों लगे हैं मित्र
ये पैर जो मेरे हमसफर थे
ऊँची-नीची पहाड़ियों में लहूलुहान
साथियों के साथ चलते पैर
आज इतने डगमगाते क्यों हैं दोस्त
क्यों नहीं चलना चाहते साथ
इन जाने-पहचाने रास्ते पर
क्या कहीं सुगम रास्ते की तलाश की है तुमने
सच मित्र
मुझे भी बताओ न
किस रास्ते का अनुसंधान किया है तुमने
किन महापुरुषों के क़दम
हमकदम हैं तुम्हारे ?
 
ये तुम्हारी आँखों को क्या हुआ मित्र
इसमें मेरे प्रतिबिम्ब क्यों नहीं बनते
क्या दर्द होता है इनमें
या तुम रात भर सो नहीं पाते
देखो तो तुम्हारी आवाज़ इतनी रूखी क्यों है
तुम खीझ क्यों जाते हो बार-बार
तुम्हारे चेहरे की नसें तन क्यों जाती हैं मुझे देख
ठीक-ठाक तो रहे हो न पिछले दिनों
घर-परिवार
बच्चे, माँ-पिताजी
सकुशल तो हैं न सभी कुछ?
 
तुम्हारे अंदर की करुणा का क्या हुआ दोस्त
पीड़ा भी कहीं खो गयी है शायद
तुम्हारा हृदय कोई सन्देश ग्रहण क्यों नहीं करता
तुम्हारी देह में पुलक क्यों नहीं होती?
सच बताना
कैसे हो मित्र
क्या-क्या करते हो आजकल
कहाँ-कहाँ जाते हो?