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किताब / प्राणेश कुमार

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अँधेरी सुरंग ,
भय और असुरक्षा के बीच
प्रकाशपुंज
साजिशों के खाते में
कर्ज में डूबे आदमी की मुक्ति
रक्त-पिपासु हिंस्त्र पशु
और आदमी की समझ के बीच
सलीका सिखाती है किताब।
 
किताब
अतीत की स्मृतियों की गौरव गाथा
वर्तमान का संघर्ष
भविष्य की किरण-रेखा होती हैं
इसके हर्फों में छिपी होती है
आग की गर्मी
बर्फ की शीतलता
उन्मुक्त आकाश होता है इसमें
जंजीरों के टूटने की आवाज़ होती है
बालक की मासूम आँखें झाँकती हैं
पुस्तक से
पुस्तक
सभ्यता की सबसे बड़ी नियामत है
इस असभ्यता से भरे समाज में।
 
अक्षरों की सेना से सजी किताब
लड़ती है अँधेरों के काले भयानक दैत्यों से
मष्तिस्क के अँधेरे कोने तक जाती है
इसकी ज्योति
किताब
करोड़ों वर्षों की सभ्यता का सार
जीवित समाज
संगीत और कविता है।
 
खत्म नहीं होगा किताब का अस्तित्व
पेड़ों की पत्तियाँ
धरती की कोख
पहाड़ों की चोटियाँ
लोकगायक के गीत
या बच्चों की हँसी
छुपा लेगी किताब
रखेगी सुरक्षित युगों तक।