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कथा है कि कोई अंत नहीं / गुन्नार एकिलोफ़

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कथा है कि कोई अंत नहीं
गो अंत से होता है इसका प्रारम्भ
और मनुष्य उसी वृत्त में क़ैद

एक आदमी, एक औरत,
एक बद, एक नेक,
एक माँ, एक पिता,
एक पुत्र, एक भाई,
एक चिड़िया लिए पारखी निगाहें
फुदकती है डाल से डाल
और निहारती है तुम्हें
कौन है चिड़िया ?
तुम्हारी आत्मा
कठिन है चिड़ियों की ज़िन्दगी :
वे तुम पर डालती हैं नज़र
और हो जाती हैं भयभीत ।