भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीम की गन्ध / नामवर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:23, 23 सितम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नामवर सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ईख के हास
पयोद के खण्ड
अलाव के धूम
घुली अमराइयाँ
मीकते मेमने
टूटती पत्तियाँ
काँपती - सी नभ की गहराइयाँ
नीम की गन्ध घुली - घुली साँझ
नशीली व्यथा से भरी जमुहाइयाँ ।

सूनी - सफ़ेद डरी हुई नीरव
भीतियों ने निगली परछाइयाँ ।