भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पियासल / दीपा मिश्रा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 15 अक्टूबर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपा मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पियासल चिड़इ तकैत छल
पोखरि,चभच्चा, ख़त्ता,इनार
मोन अकुलायल छल
बैसाखक ताप देह झड़का रहल
कोन गाम जाइ,कोन ठाम जाइ

सुनने छल बड बड खिस्सा
कने मने ओकरो मोन छैक
कहैत रहै बुरही चिड़इ मैञा
अजुका दिन त' पाबनि होइत छलै
करैत छल भरिगाम मिलिके
जलाशयक सफाइ
छिटैत छल भरिगाम चून

बड़की बुआसिन
घांटो पूजा करैत छलीह
आ नेना सबके करबैत छलीह सतुआइन
बड़ी,पूरी,कचका आम,मुइन्गाक झोर
बाइस पाबनि लेल ओरिया के अलगसँ
सरंजाम करैत छलीह माए

आह चिड़इ के सब मोन पड़ैत गेल
लेपैत छल लोक भरि देह माटि
आ जाड़क कप पित्त निपत्ता भऽ जाइत छल
तुलसी पर बसनीमे काकी आर
सारा पर पितर के बाबा दैत छलाह जल
करैत छलाह प्रणाम सबहक कल्याणार्थ
पियास ककरा नै होइत छै?
जीवित मृत सबकेँ एके रंग
बुझबाक फेर मात्र

चिड़इ अपन पियास बिसरि
गाम दिस तकलक
धुर रे मनुख !
तों कतौ के नै रहलैं
अपन जीवनकेँ अपने दुइर केलैं
हम पियासल उड़ि जाएब दूर देश
हम त' नाम मात्रक चिड़इ छी
नन्हकी सन देह हमर
नन्हकी सन आत्मा
हमर परानक कौन मोल
तोहर मोनक सोच
कोना मेटेतौ कलेश

हे गोसाउन क्षमा करबै
हे डीह क्षमा करबै
हे पानि माफ़ करबै
हे गाछ माफ़ करबै
नहि जानि कहिया ई बूझत अहाँक मोल
एहेन नै जे एकरो प्राण अपटि खेतमे जाए
हमरे जेना ई औनाए
आ नै भेटै एकरा एको ठोप पानि
जुड़ेबाक लेल!