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हम रुकि जाइत छी / दीपा मिश्रा

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हम दू डेग चलैत छी फेरो
रुकि जाइत छी
एहन बात नै जे हमरामे
कोनो शारीरिक दोष अछि
एहनो नै जे चलैत - चलैत
हमर पएर आब अशक्त भ' चुकल
हमर वयस सेहो एखुनका हिसाबें
ओतेक बेसी त' नहि भेल
उत्साह आ क्षमताक सेहो अभाव नै

तखैन हम किएक रुकैत छी
यदि हम स्वयं अहाँके ई नहि कहब
त' हमर रुकबाक पतो अहाँके नै चलत
किएक त' हमरा अहाँ ओतबी देखैत छी
जतेक अहाँके अपना भरि ज़रूरत

हम चाहलौं जे नै कही किछु
जेना सब चुप रहैये हमहूँ रही
मुदा पता नै किएक होइए जे
भीतर कोनो बात नै राखी नुकाके
मोनक भार देहकेँ बेसी
असमर्थ क' दैत छै
हृदय पर बड़का पाथरो लोक राखि ले त'
ओतेक दर्द नहि होइत हेतै

हम रुकैत छी ओकरा लेल
जे चलबाक क्रममे हमरासँ पाछाँ छुटि गेल
ओकर फेरो संग अएबाक प्रतीक्षा करैत छी
एकबेर अवश्य सोर पाड़ैत छी ओकरा जे जीवनक आपा-धापीमे
हमरासँ आगाँ निकलि गेल
ओ यदि हाथ बढ़बैये त' हमहूँ
डेग कनेक तेज क' ओकरा तक पहुँचि जाइत छी

हम रुकैत छी अपना आपकेँ
बुझबाक लेल
अनवरत चलिते रहैसँ
अपनेकेँ बिसरि जाइत छी
एहि चलबाक मध्य जीवनमे आएल
सुख दुःख,मान अपमान, नीक अधलाह
सबटाके हिसाब लगबैत छी
जे ज़रूरी बुझाइए झोरामे भरि लैत छी जे नै तकरा ठामहि छोड़ि दैत छी
मनो मालिन्य,अवसादक भार लेने
चलब कहाँ संभव

हम रुकैत छी ताकि समेट सकी ओ सबटा क्षण जे हमरा लेल बनल छल
एकबेर हसोंथि के पुरान कविता,कथा सबकेँ पढ़ैत छी
हम सीखैत छी जतय ग़लती केने रही
हम पैघ सांस भरि अपन भीतरकेँ
मजबूत करै छी
रुकब हमरा लेल ज़रूरी
आगाँ बढ़ब तखने संभव।