भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस राति बचत / दीपा मिश्रा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 19 अक्टूबर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपा मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जे आइ प्रसिद्ध छथि
ओ बिसरा देल जेतैथ
जे जागल छथि ओ
चिर निद्रामे सुति रहतैथ
पुरान रस्ता सब पर उगि आओत
पाकड़िक बड़का बड़का गाछ
सबटा मार्ग बन्द भ' जाएत
नदी जे एहन तांडव देखा रहल
सुखाके दूर अकाशमे बिला जाएत
चन्द्रमा टूटि के खसत आ छहोछित भ'
छाउर बनि माटिमे मिलि जाएत
चिड़इ चुनमुनी मात्र कथामे बसत
आ फूलक सुगंधि मात्र स्मृतिमे
डोंगीकेँ उनटा क'
ओहिपर बैसल एकटा नेना
पुरना खुरचनकेँ हाथमे लेने
उनटा पुनटाके देखैत थाकि हारिकेँ
तपैत बालू पर सुतिकेँ
ओहि समुद्रक स्वप्न देखत
जकरा द' ओ कहिओ खिस्सामे सुनने छल।