भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आलिंगन / नजवान दरविश / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:59, 10 नवम्बर 2024 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परेशान और तरबतर मेरे हाथ
घायल हुए
पहाड़ों, घाटियों और मैदानों के आलिंगन की कोशिश में
और जिस समुद्र से मुझे प्यार था
वह मुझे बार-बार डुबाता रहा

प्रेमी की यह देह एक लाश बन चुकी है
पानी पर उतराती हुई
परेशान और तरबतर

मेरी लाश भी
अपनी बाँहों को फैलाए हुए
मरी जा रही है
उस समुद्र को गले लगाने के लिए
जिसने डुबाया है उसे ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल