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शोर सो गया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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73
जन्मों का लेखा
कब क्या हो जाएगा
किसने देखा?
74
साँझ हो गई
खुशनुमा जिंदगी
बाँझ हो गई।
75
भीड़ भरे थे
घर और आँगन
अब निर्जन।
76
शोर सो गया
जागा अकेलापन
भोर हो गया।
77
कहाँ हो कैसे
तरसते हैं कान
घर गूँजता।
78
काँपते हाथ
दीवारें गुमसुम
कोई न साथ।
79
मैं ही बोला
सुना सिर्फ मैंने ही
उत्तर डूबे।
80
ढूँढे छुअन
खुरदुरे ये हाथ
कोई न पास।
81
सन्नाटे जागें
डबडब नयन
गीला आँगन।
82
दबी पुकार
सुने अब न कोई
निर्जन वन।
20/10/24